Tuesday, 04/03/2025
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त्रिपुरा: धर्म परिवर्तन के बाद, बहिष्कार झेल रहे आदिवासी परिवारों पर हाई कोर्ट का फ़ैसला….

by Admin
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DHM NEWS DESK,

त्रिपुरा हाई कोर्ट ने धर्म के नाम पर उत्पीड़न और सामाजिक बहिष्कार झेल रहे दो आदिवासी परिवारों के मामले में एक बड़ा कदम उठाया है.

मंगलवार को कोर्ट ने इस मामले को लेकर गंभीर चिंता जताई और प्रशासन को आदेश दिया कि वो इस संबध में तुरंत कदम उठाए.

कोर्ट ने कहा कि ज़रूरी पड़ने पर प्रशासन इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों को गिरफ्तार करे.

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ये मामला त्रिपुरा के उनाकोटि और नॉर्थ त्रिपुरा ज़िले के दो चकमा आदिवासी परिवारों का है जिन्होंने हाल में ईसाई धर्म अपना लिया था.

क्या है मामला

इन दोनों परिवारों ने बीते साल नवंबर में ईसाई धर्म अपनाया था. इन दोनों परिवारों का दावा है कि धर्म परिवर्तन करने के महीने भर बाद आदिवासी चकमा समुदाय ने उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया.

दोनों परिवारों ने पहले समुदाय के भीतर बातचीत के ज़रिए और फिर स्थानीय अधिकारियों और पुलिस में शिकायत देकर मामला सुलझाने की कोशिश की लेकिन समस्या का समाधान नहीं निकला.

इसके बाद इन दोनों परिवारों से निराश होकर हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.

याचिका में दोनों परिवारों का कहना है कि धर्म परिवर्तन के ‘गुनाह’ के कारण उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया है. इससे उन्हें कई तरह की गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ा रहा है.

मामले की सुनवाई हाई कोर्ट की सिंगल जज की बेंच ने की, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस अरिन्दम लोध कर रहे थे.

अदालत में इन दोनों का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट सम्राट कर भौमिक ने किया. इन्होंने ही दोनों परिवारों की तरफ से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी.

याचिका में क्या कहा गया था

भौमिक ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि उनाकोटि जिले की उत्तर अंधरचर्रा सामाजिक विचार कमिटी और नॉर्थ त्रिपुरा जिले की कंचनचेर्रा चकमा सामाजिक आदम पंचायत खुद को चकमा समुदाय की पारंपरिक सामाजिक संगठन कहती हैं.

इन दोनों संगठनों पर आरोप है कि उन्होंने चकमा समुदाय के ईसाई परिवारों का सामाजिक बहिष्कार कर और उन्हें जबरन नज़रबंद कर उनकी आजीविका और जीने की कोशिश को जानबूझ कर ख़तरे में डाला और उन्हें प्रताड़ित किया.

बीते साल नवंबर में उनाकोटी के पश्चिम अंधरचर्रा गांव के दो चकमा परिवारों ने अपने पूरे परिवार के साथ ईसाई धर्म अपना लिया था.

इसके बाद चकमा समुदाय से नाता रखने वाले दो संगठनों चकमा सामाजिक विचार कमिटी और आदम पंचायत ने दोनों परिवारों को समुदाय के सामाजिक जीवन से अलग कर दिया और उनके सामाजिक बहिष्कार का आदेश दिया.

ईसाई धर्म अपनाने वालों में से एक पूर्णमय चकमा महात्मा गांधी नरेगा योजना (ग्रामीण स्वरोजगार गारंटी योजना) में काम करते हैं. उनका दावा है कि ईसाई धर्म अपनाने के बाद न तो उन्हें काम मिला और न ही काम का कोई और मौक़ा. उनका कहना है कि इस कारण उनके लिए आजीविका का गंभीर संकट खड़ा हो गया.

तरुण चकमा की शिकायत

ईसाई धर्म अपनाने वाले अन्य व्यक्ति तरुण चकमा एक ऑटो ड्राइवर के तौर पर काम करते हैं. वो कहते हैं कि धर्म परिवर्तन के बाद चकमा समुदाय के संगठनों ने लोगों से कहा कि वो उनके ऑटो का इस्तेमाल न करें. उन्होंने आदेश न मामने वालों पर जुर्माना लगाने की धमकी दी.

तरुण चकमा का कहना है कि उन्होंने कर्ज़ लेकर ऑटो ख़रीदा था. कई महीनों से काम ठीक न चलने के कारण उन पर ऑटो का कर्ज़ चुकाने में मुश्किलें तो आ ही रही हैं, इसके साथ-साथ उन्हें रोज़ाना की ज़रूरतें पूरा करने के लिए कर्ज़ लेना पड़ रहा है. इससे उनके ऑटो और उनकी आजीविका ख़तरे में पड़ गई है.

इसके अलावा चकमा ईसाई परिवारों ने ये भी आरोप लगाया कि उन्हें चर्च जाने में और इस नए धर्म के नियमों का पालन करने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

उनका आरोप है कि समुदाय के स्थानीय नेता उनके साथ बात करने वालों पर जुर्माना लगाने की धमकियां दे रहे हैं. उनका कहना है कि विवाद सुलझने की उन्होंने तमाम कोशिशें की लेकिन सभी कोशिशें नाकाम रहीं.

इन घटनाओं का नाता चकमा समुदाय के संगठनों के दिए आदेश से है जिनमें बौद्ध धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपनाने वाले दोनों परिवारों को ‘समाज विरोधी’ करार देकर उनके सामाजिक बहिष्कार की बात की गई थी.

मिज़ोरम चकमा समुदाय के नियम

उत्तर अंधरचर्रा सामाजिक विचार कमिटी जैसे चकमा समाज से जुड़े संगठनों को कहना है कि ईसाई धर्म अपनाने वालों को समुदाय में वापिस तभी लिया जाएगा जब वो फिर से धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म अपना लें.

ये ग़ौर करने की बात है कि त्रिपुरा में चकमा समुदाय के नियम लिखित रूप में नहीं हैं. यहां के चकमा समुदाय के लोग अक्सर नियमों का पालन करते हैं.

इस क़ानून की धारा 65 में कहा गया है कि व्यक्ति को स्वेच्छा से कोई भी धर्म अपनाने की आज़ादी है और धर्म चुनने के कारण किसी व्यक्ति को सज़ा नहीं दी जानी चाहिए.

धर्म के आधार पर प्रताड़ित किए जाने पर इस क़ानून में सज़ा का भी प्रावधान है. दोनों परिवारों ने इसे लेकर पहले कुमारघाट सब-डिविज़नल पुलिस अधिकारी से और फिर कुमारघाट सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट से शिकायत की.

उनका कहना था कि उन्हें प्रताड़ित करने के लिए परंपरागत क़ानूनों का ग़लत इस्तेमाल किया गया है.

लेकिन परिवारों का कहना है कि शिकायतों के बाद भी उन्हें न तो प्रशासन की तरफ से और न ही पुलिस की तरफ से किसी तरह की राहत दी गई.

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा

जस्टिस अरिन्दम लोध ने राज्य प्रशासन को इस तरह की असंवैधानिक गतिविधि में शामिल होने वालों के ख़िलाफ़ कड़े कदम उठाने और भारतीय संविधान के सिद्धांतों और मूल्यों की रक्षा करने का आदेश दिया है.

उन्होंने चकमा समुदाय से जुड़े पारंपरिक संगठनों को आदेश दिया कि वो ‘असंवैधानिक’ आदेश जारी न करें.

साथ ही चेतावनी दी कि इस तरह की घटनाएं फिर हुईं तो प्रशासन और पुलिस उनके ख़िलाफ़ सख्त कदम उठा सकती है.

कोर्ट ने चकमा समुदाय के किसी भी सदस्य के ख़िलाफ़ ग़ैरक़ानूनी और असंवैधानिक गतिविधियों में शामिल रहने के ख़िलाफ़ चेतावनी देने के साथ ये अपील की कि सभी भारतीय संविधान का पालन करें.

कोर्ट ने अपन आदेश में कहा, “अगले आदेश तक धर्म के आधार पर बहिष्कार और याचिकाकर्ता को समाज से बाहर करने से जुड़े सभी आदेश स्थगित किए जाते हैं.”

इसके साथ-साथ कोर्ट ने राज्य प्रशासन से कहा कि वो समाजपति, खुद को समुदाय के नेता कहने वालों या इस तरह की असंवैधानिक गतिविधियों में शामिल चकमा समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई करें.

कोर्ट ने कहा, “भारतीय संविधान की भावना और मूल्यों को बचाने के लिए राज्य प्रशासन किसी भी समुदाय के कसी भी व्यक्ति के ख़िलाफ़ कदम उठा सकता है. भारतीय संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों, ग़रैक़ानूनी गतिविधियों में शामिल रहने वालों को गिरफ्तार करने में राज्य प्रशासन कोताही नहीं बरतेगा.”

कोर्ट के आदेश के अनुसार राज्य प्रशासन को इस मामले में अदालत को एक्शन टेकन रिपोर्ट सौंपनी है.

हाई कोर्ट के इस आदेश को धर्म के आधार पर बहिष्कार रोकने और संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

त्रिपुरा में आबादी

साल 2011 की जनगणना के अनुसार त्रिपुरा हिंदू बहुल राज्य है.

यहां की 36.74 लाख की कुल आबादी में 83.40 फ़ीसदी हिंदू हैं.

जहां आबादी में 8.60 फ़ीसदी यानी 3.16 लाख मुसलमान हैं, वहीं 4.35 फ़ीसदी यानी 1.60 लाख ईसाई धर्म मानने वाले हैं.

ईसाई धर्म मानने वालों के बड़े हिस्से का नाता आदिवासी समुदाय से है.

कोर्ट के आदेश पर समुदायों की प्रतिक्रिया

त्रिपुरा के कैथलिक चर्च ने कोर्ट के आदेश का स्वागत किया है. चर्च की ओर से जारी बयान में कहा गया है, “भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और सभी को हक़ है कि वो सभी को उपदेश देने, मानने और अपना धर्म चुनने का मौलिक अधिकार देता है” और “कोई भी किसी नागरिक के अधिकारों का हनन नहीं कर सकता.”

त्रिपुरा विश्व हिंदू परिषद के सेक्रेटरी महेंद्रपाल सिंह ने कहा है कि हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कर अन्य धर्म अपनाना लंबे वक्त से मुद्दा रहा है.

वो कहते हैं कि त्रिपुरा समेत देश के उत्तरपूर्वी हिस्से में इस तरह के धर्म परिवर्तन अकसर सुविधाएं देने की आड़ में चोरी छिपे किए जा रहे हैं.

महेंद्रपाल सिंह कहते है, “मासूम हिंदू आदिवासियों को तरह-तरह के लालच देकर उन्हें ईसाई बनाया जा रहा है.”

वो कहते हैं कि इस तरह के धर्म परिवर्तन कभी “डर से कराए जाते हैं, तो कभी ताकत के बल पर. ये एक बड़ी साजिश का हिस्सा है जिसके तहत उस हिंदू संस्कृति और परंपराओं को ख़त्म किया जा रहा है जिसने ऐतिहासिक तौर पर लोगों को बांध कर रखा है.”

उन्होंने कहा कि इससे निपटने के लिए विश्व हिंदू परिषद ने शिक्षा और रोज़गार के मौक़े पैदा करने जैसे कई तरह के सामाजिक कार्यक्रमों की शुरूआत की है. इन्हें ऐसी जगहों पर अमल में लाया जा रहा है जिन्हें मिशनरी निशाना बनाते हैं.

वो कहते हैं कि इन कार्यक्रमों का असर दिख रहा है और कई लोग अब ‘घर वापसी’ कर रहे हैं यानी एक बार फिर हिंदू बन रहे हैं.

बीबीसी हिंदी से बात करते हुए चकमा समाजपति (त्रिपुरा में चकमा समुदाय के नेता) देबजान चकमा कहते हैं कि सुबह के अख़बार से उन्हें इस घटना के बारे में जानकरी मिली.

वो सवाल करते हैं कि जब एक व्यक्ति धर्म परिवर्तन करता है, तो क्या समाज उसका बहिष्कार करता है? या फिर जिसने दूसरा धर्म अपनाया वो खुद ही अपने आप को समुदाय से दूर कर लेता है?

बीबीसी हिन्दी

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